और शास्त्रों से लेकर उन्हें समझाते हुए यह सिद्ध करता रहा कि मसीह को यातनाएँ झेलनी ही थीं और फिर उसे मरे हुओं में से जी उठना था। वह कहता, “यह यीशु ही, जिसका मैं तुम्हारे बीच प्रचार करता हूँ, मसीह है।”
उनमें से कुछ जो सहमत हो गए थे, पौलुस और सिलास के मत में सम्मिलित हो गये। परमेश्वर से डरने वाले अनगिनत यूनानी भी उनमें मिल गये। इनमें अनेक महत्वपूर्ण स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं।
पर यहूदी तो डाह में जले जा रहे थे। उन्होंने कुछ बाजारू गुँडों को इकट्ठा किया और एक हुजूम बना कर नगर में दंगे करा दिये। उन्होंने यासोन के घर पर धावा बोल दिया। और यह कोशिश करने लगे कि किसी तरह पौलुस और सिलास को लोगों के सामने ले आयें।
किन्तु जब वे उन्हें नहीं पा सके तो यासोन को और कुछ दूसरे बन्धुओं को नगर अधिकारियों के सामने घसीट लाये। वे चिल्लाये, “ये लोग जिन्होंने सारी दुनिया में उथल पुथल मचा रखी है, अब यहाँ आये हैं।
और यासोन सम्मान के साथ उन्हें अपने घर में ठहराये हुए है। और वे सभी कैसर के आदेशों के विरोध में काम करते हैं और कहते है, एक राजा और है जिसका नाम है यीशु।”
ये लोग थिस्सुलुनिके के लोगों से अधिक अच्छे थे। इन लोगों ने पूरा मन लगाकर वचन को सुना और हर दिन शास्त्रों को उलटते पलटते यह जाँचते रहे कि पौलुस ने जो बातें बतायी हैं, क्या वे सत्य हैं।
किन्तु जब थिस्सुलुनिके के यहूदियों को यह पता चला कि पौलुस बिरिया में भी परमेश्वर के वचन का प्रचार कर रहा है तो वे वहाँ भी आ धमके। और वहाँ भी दंगे करना और लोगों को भड़काना शुरु कर दिया।
पौलुस को ले जाने वाले लोगों ने उसे एथेंस पहुँचा दिया और सिलास तथा तिमुथियुस के लिये यह आदेश देकर कि वे जल्दी से जल्दी उसके पास आ जायें, वहीं से चल पड़ें।
इसलिए हर दिन वह यहूदी आराधनालय में यहूदियों और यूनानी भक्तों से वाद-विवाद करता रहता था। वहाँ हाट-बाजार में जो कोई होता वह उससे भी हर दिन बहस करता रहता।
कुछ इपीकुरी और स्तोइकी दार्शनिक भी उससे शास्त्रार्थ करने लगे। उनमें से कुछ ने कहा, “यह अंटशंट बोलने वाला कहना क्या चाहता है?” दूसरों ने कहा, “यह तो विदेशी देवताओं का प्रचारक मालूम होता है।” उन्होंने यह इसलिए कहा था कि वह यीशु के बारे में उपदेश देता था और उसके फिर से जी उठने का प्रचार करता था।
वे उसे पकड़कर अरियुपगुस [*अरियुपगुस एथेंस के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का एक दल। ये लोग न्यायधीशों के समान हुआ करते थे।] की सभा में अपने साथ ले गये और बोले, “क्या हम जान सकते हैं कि तू जिसे लोगों के सामने रख रहा है, वह नयी शिक्षा क्या है?
घूमते फिरते तुम्हारी उपासना की वस्तुओं को देखते हुए मुझे एक ऐसी वेदी भी मिली जिस पर लिखा था, ‘अज्ञात परमेश्वर’ के लिये सो तुम बिना जाने ही जिस की उपासना करते हो, मैं तुम्हें उसी का वचन सुनाता हूँ।
एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें और उसी ने लोगों का समय निश्चित कर दिया और उस स्थान की, जहाँ वे रहें सीमाएँ बाँध दीं।
क्योंकि उसी में हम रहते हैं उसी में हमारी गति है और उसी में है हमारा अस्तित्व। इसी प्रकार स्वयं तुम्हारे ही कुछ लेखकों ने भी कहा है, ‘क्योंकि हम उसके ही बच्चे हैं।’
“और क्योंकि हम परमेश्वर की संतान हैं इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह दिव्य अस्तित्व सोने या चाँदी या पत्थर की बनी मानव कल्पना या कारीगरी से बनी किसी मूर्ति जैसा है।
उसने एक दिन निश्चित किया है जब वह अपने नियुक्त किये गये एक पुरुष के द्वारा न्याय के साथ जगत का निर्णय करेगा। मरे हुओं में से उसे जिलाकर उसने हर किसी को इस बात का प्रमाण दिया है।”
जब उन्होंने मरे हुओं में से जी उठने की बात सुनी तो उनमें से कुछ तो उसकी हँसी उड़ाने लगे किन्तु कुछ ने कहा, “हम इस विषय पर तेरा प्रवचन फिर कभी सुनेंगे।”