1
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यहोवा का धन्यवाद करो, उससे प्रार्थना करो, देश देश के लोगों में उसके कामों का प्रचार करो! |
2
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उसके लिये गीत गाओ, उसके लिये भजन गाओ, उसके सब आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करो! |
3
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उसके पवित्र नाम की बड़ाई करो; यहोवा के खोजियों का हृदय आनन्दित हो! |
4
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यहोवा और उसकी सामर्थ को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो! |
5
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उसके किए हुए आश्चर्यकर्म स्मरण करो, उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो! |
6
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हे उसके दास इब्राहीम के वंश, हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो! |
7
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वही हमारा परमेश्वर यहोवा है; पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं। |
8
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वह अपनी वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, यह वही वचन है जो उसने हजार पीढ़ीयों के लिये ठहराया है; |
9
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वही वाचा जो उसने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसके विषय में उसने इसहाक से शपथ खाई, |
10
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और उसी को उसने याकूब के लिये विधि करके, और इस्राएल के लिये यह कह कर सदा की वाचा करके दृढ़ किया, |
11
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कि मैं कनान देश को तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा॥ |
12
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उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े, और उस देश में परदेशी थे। |
13
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वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे; |
14
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परन्तु उसने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, |
15
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कि मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो! |
16
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फिर उसने उस देश में अकाल भेजा, और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया। |
17
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उसने यूसुफ नाम एक पुरूष को उन से पहिले भेजा था, जो दास होने के लिये बेचा गया था। |
18
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लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डाल कर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया; |
19
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जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा। |
20
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तब राजा ने दूत भेज कर उसे निकलवा लिया, और देश देश के लोगों के स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए; |
21
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उसने उसको अपने भवन का प्रधान और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया, |
22
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कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियों को ज्ञान सिखाए॥ |
23
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फिर इस्राएल मिस्त्र में आया; और याकूब हाम के देश में परदेशी रहा। |
24
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तब उसने अपनी प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके द्रोहियों से अधिक बलवन्त किया। |
25
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उसने मिस्त्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासों से छल करने लगे॥ |
26
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उसने अपने दास मूसा को, और अपने चुने हुए हारून को भेजा। |
27
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उन्होंने उनके बीच उसकी ओर से भांति भांति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए। |
28
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उसने अन्धकार कर दिया, और अन्धियारा हो गया; और उन्होंने उसकी बातों को न टाला। |
29
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उसने मिस्त्रियों के जल को लोहू कर डाला, और मछलियों को मार डाला। |
30
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मेंढक उनकी भूमि में वरन उनके राजा की कोठरियों में भी भर गए। |
31
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उसने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियां आ गईं। |
32
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उसने उनके लिये जलवृष्टि की सन्ती ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई। |
33
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और उसने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को वरन उनके देश के सब पेड़ों को तोड़ डाला। |
34
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उसने आज्ञा दी तब अनगिनत टिडि्डयां, और कीड़े आए, |
35
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और उन्होंने उनके देश के सब अन्न आदि को खा डाला; और उनकी भूमि के सब फलों को चट कर गए। |
36
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उसने उनके देश के सब पहिलौठों को, उनके पौरूष के सब पहिले फल को नाश किया॥ |
37
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तब वह अपने गोत्रियों को सोना चांदी दिला कर निकाल लाया, और उन में से कोई निर्बल न था। |
38
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उनके जाने से मिस्त्री आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उन में समा गया था। |
39
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उसने छाया के लिये बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिये आग प्रगट की। |
40
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उन्होंने मांगा तब उसने बटेरें पहुंचाई, और उन को स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया। |
41
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उसने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी। |
42
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क्योंकि उसने अपने पवित्र वचन और अपने दास इब्राहीम को स्मरण किया॥ |
43
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वह अपनी प्रजा को हर्षित करके और अपने चुने हुओं से जयजयकार कराके निकाल लाया। |
44
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और उन को अन्यजातियों के देश दिए; और वे और लोगों के श्रम के फल के अधिकारी किए गए, |
45
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कि वे उसकी विधियों को मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। याह की स्तुति करो! |
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