1
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हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। |
2
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कुकर्मियों की गोष्ठी से, और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। |
3
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उन्होंने अपनी जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपने कड़वे वचनों के तीरों को चढ़ाया है; |
4
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ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं। |
5
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वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगाने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा? |
6
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वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं! |
7
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परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे। |
8
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वे अपने ही वचनों के कारण ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे; जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपने अपने सिर हिलाएंगे |
9
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तब सारे लोग डर जाएंगे; और परमेश्वर के कामों का बखान करेंगे, और उसके कार्यक्रम को भली भांति समझेंगे॥ |
10
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धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मन वाले बड़ाई करेंगे॥ |
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