1
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हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपने ही नाम की महिमा, अपनी करूणा और सच्चाई के निमित्त कर। |
2
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जाति जाति के लोग क्यों कहने पांए, कि उनका परमेश्वर कहां रहा? |
3
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हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में हैं; उसने जो चाहा वही किया है। |
4
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उन लोगों की मूरतें सोने चान्दी ही की तो हैं, वे मनुष्यों के हाथ की बनाईं हुई हैं। |
5
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उनका मुंह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; उनके आंखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकतीं। |
6
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उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकतीं। |
7
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उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं; और अपने कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। |
8
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जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनाने वाले हैं; और उन पर भरोसा रखने वाले भी वैसे ही हो जाएंगे॥ |
9
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हे इस्राएल यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहायक और ढाल वही है। |
10
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हे हारून के घराने यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहायक और ढाल वही है। |
11
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हे यहोवा के डरवैयो, यहोवा पर भरोसा रखो! तुम्हारा सहायक और ढाल वही है॥ |
12
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यहोवा ने हम को स्मरण किया है; वह आशीष देगा; वह इस्राएल के घराने को आशीष देगा; वह हारून के घराने को आशीष देगा। |
13
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क्या छोटे क्या बड़े जितने यहोवा के डरवैये हैं, वह उन्हें आशीष देगा॥ |
14
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यहोवा तुम को और तुम्हारे लड़कों को भी अधिक बढ़ाता जाए! |
15
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यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, उसकी ओर से तुम अशीष पाए हो॥ |
16
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स्वर्ग तो यहोवा का है, परन्तु पृथ्वी उसने मनुष्यों को दी है। |
17
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मृतक जितने चुपचाप पड़े हैं, वे तो याह की स्तुति नहीं कर सकते, |
18
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परन्तु हम लोग याह को अब से ले कर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। याह की स्तुति करो! |
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