1
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याह की स्तुति करो। मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा। |
2
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यहोवा के काम बड़े हैं, जितने उन से प्रसन्न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं। |
3
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उसके काम का वैभवमय और ऐश्वरर्यमय होते हैं, और उसका धर्म सदा तक बना रहेगा। |
4
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उसने अपने आश्चर्यकर्मों का स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है। |
5
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उसने अपने डरवैयों को आहार दिया है; वह अपनी वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा। |
6
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उसने अपनी प्रजा को अन्यजातियों का भाग देने के लिये, अपने कामों का प्रताप दिखाया है। |
7
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सच्चाई और न्याय उसके हाथों के काम हैं; उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य हैं, |
8
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वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं। |
9
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उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया है; उसने अपनी वाचा को सदा के लिये ठहराया है। उसका नाम पवित्र और भय योग्य है। |
10
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बुद्धि का मूल यहोवा का भय है; जितने उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उनकी बुद्धि अच्छी होती है। उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी॥ |
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