कि जब कोई पुरूष यहोवा की मन्नत माने, वा अपने आप को वाचा से बान्धने के लिये शपथ खाए, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुंह से निकला हो उसके अनुसार वह करे।
तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत वा उसका वह वचन सुनकर, जिस से उसने अपने आप को बान्धा हो, उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्यों न हो, जिस से उसने अपने आप को बान्धा हो, वह भी स्थिर रहे।
परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको बरजे, तो उसकी मन्नतें वा और प्रकार के बन्धन, जिन से उसने अपने आप को बान्धा हो, उन में से एक भी स्थिर न रहे, और यहोवा यह जान कर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप क्षमा करेगा।
परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उसने मानी है, और जो बात बिना सोच विचार किए कहने से उसने अपने आप को वाचा से बान्धा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप क्षमा करेगा।
और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्यों न हो, जिस से उसने अपने आप को बान्धा हो, वह स्थिर रहे।
परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुंह से अपने बन्धन के विषय निकला हो, उस में से एक बात भी स्थिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिये यहोवा उस स्त्री का वह पाप क्षमा करेगा।
अर्थात यदि उसका पति दिन प्रति दिन उससे कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनों को जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उसने उन को दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उसने कुछ नहीं कहा।