Indian Language Bible Word Collections
Job 39:18
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Job 39 Verses
1
|
क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं? वा जब हरिणियां बियाती हैं, तब क्या तू देखता रहता है? |
2
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क्या तू उनके महीने गिन सकता है, क्या तू उनके बियाने का समय जानता है? |
3
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जब वे बैठ कर अपने बच्चों को जनतीं, वे अपनी पीड़ों से छूट जाती हैं? |
4
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उनके बच्चे हृष्टपुष्ट हो कर मैदान में बढ़ जाते हैं; वे निकल जाते और फिर नहीं लौटते। |
5
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किस ने बनैले गदहे को स्वाधीन कर के छोड़ दिया है? किस ने उसके बन्धन खोले हैं? |
6
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उसका घर मैं ने निर्जल देश को, और उसका निवास लोनिया भूमि को ठहराया है। |
7
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वह नगर के कोलाहल पर हंसता, और हांकने वाले की हांक सुनता भी नहीं। |
8
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पहाड़ों पर जो कुछ मिलता है उसे वह चरता वह सब भांति की हरियाली ढूंढ़ता फिरता है। |
9
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क्या जंगली सांढ़ तेरा काम करने को प्रसन्न होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा? |
10
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क्या तू जंगली सांढ़ को रस्से से बान्धकर रेघारियों में चला सकता है? क्या वह नालों में तेरे पीछे पीछे हेंगा फेरेगा? |
11
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क्या तू उसके बड़े बल के कारण उस पर भरोसा करेगा? वा जो परिश्रम का काम तेरा हो, क्या तू उसे उस पर छोड़ेगा? |
12
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क्या तू उसका विश्वास करेगा, कि वह तेरा अनाज घर ले आए, और तेरे खलिहान का अन्न इकट्ठा करे? |
13
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फिर शुतुरमुगीं अपने पंखों को आनन्द से फुलाती है, परन्तु क्या ये पंख और पर स्नेह को प्रगट करते हैं? |
14
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क्योंकि वह तो अपने अण्डे भूमि पर छोड़ देती और धूलि में उन्हें गर्म करती है; |
15
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और इसकी सुधि नहीं रखती, कि वे पांव से कुचले जाएंगे, वा कोई वनपशु उन को कुचल डालेगा। |
16
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वह अपने बच्चों से ऐसी कठोरता करती है कि मानो उसके नहीं हैं; यद्यपि उसका कष्ट अकारथ होता है, तौभी वह निश्चिन्त रहती है; |
17
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क्योंकि ईश्वर ने उसको बुद्धिरहित बनाया, और उसे समझने की शक्ति नहीं दी। |
18
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जिस समय वह सीधी हो कर अपने पंख फैलाती है, तब घोड़े और उसके सवार दोनों को कुछ नहीं समझती है। |
19
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क्या तू ने घोड़े को उसका बल दिया है? क्या तू ने उसकी गर्दन में फहराती हुई अयाल जमाई है? |
20
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क्या उसको टिड्डी की सी उछलने की शक्ति तू देता है? उसके फुंक्कारने का शब्द डरावना होता है। |
21
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वह तराई में टाप मारता है और अपने बल से हषिर्त रहता है, वह हथियारबन्दों का साम्हना करने को निकल पड़ता है। |
22
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वह डर की बात पर हंसता, और नहीं घबराता; और तलवार से पीछे नहीं हटता। |
23
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तर्कश और चमकता हुआ सांग ओर भाला उस पर खड़खड़ाता है। |
24
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वह रिस और क्रोध के मारे भूमि को निगलता है; जब नरसिंगे का शब्द सुनाई देता है तब वह रुकता नहीं। |
25
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जब जब नरसिंगा बजता तब तब वह हिन हिन करता है, और लड़ाई और अफसरों की ललकार और जय-जयकार को दूर से सूंघ लेता है। |
26
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क्या तेरे समझाने से बाज़ उड़ता है, और दक्खिन की ओर उड़ने को अपने पंख फैलाता है? |
27
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क्या उकाब तेरी आज्ञा से ऊपर चढ़ जाता है, और ऊंचे स्थान पर अपना घोंसला बनाता है? |
28
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वह चट्टान पर रहता और चट्टान की चोटी और दृढ़स्थान पर बसेरा करता है। |
29
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वह अपनी आंखों से दूर तक देखता है, वहां से वह अपने अहेर को ताक लेता है। |
30
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उसके बच्चे भी लोहू चूसते हैं; और जहां घात किए हुए लोग होते वहां वह भी होता है। |