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Job 17:10
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Job 17 Verses
1
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“मेरा मन टूट चुका है। मेरा मन निराश है। मेरा प्राण लगभग जा चुका है। कब्र मेरी बाट जोह रही है। |
2
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लोग मुझे घेरते हैं और मुझ पर हँसते हैं। जब लोग मुझे सताते हैं और मेरा अपमान करते है, मैं उन्हें देखता हूँ। |
3
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“परमेश्वर, मेरे निरपराध होने का शपथ—पत्र मेरा स्वीकार कर। मेरी निर्दोषता की साक्षी देने के लिये कोई तैयार नहीं होगा। |
4
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मेरे मित्रों का मन तूने मूँदा अत: वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं। कृपा कर उन को मत जीतने दे। |
5
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लोगों की कहावत को तू जानता है। मनुष्य जो ईनाम पाने को मित्र के विषय में गलत सूचना देते हैं, उनके बच्चे अन्धे हो जाया करते हैं। |
6
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परमेश्वर ने मेरा नाम हर किसी के लिये अपशब्द बनाया है और लोग मेरे मुँह पर थूका करते हैं। |
7
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मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ। मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है। |
8
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मेरी इस दुर्दशा से सज्जन बहुत व्याकुल हैं। निरपराधी लोग भी उन लोगों से परेशान हैं जिनको परमेश्वर की चिन्ता नहीं है। |
9
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किन्तु सज्जन नेकी का जीवन जीते रहेंगे। निरपराधी लोग शक्तिशाली हो जायेंगे। |
10
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“किन्तु तुम सभी आओ और फिर मुझ को दिखाने का यत्न करो कि सब दोष मेरा है। तुममें से कोई भी विवेकी नहीं। |
11
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मेरा जीवन यूँ ही बात रहा है। मेरी याजनाऐं टूट गई है और आशा चली गई है। |
12
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किन्तु मेरे मित्र रात को दिन सोचा करते हैं। जब अन्धेरा होता है, वे लोग कहा करते हैं, ‘प्रकाश पास ही है।’ |
13
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“यदि मैं आशा करूँ कि अन्धकारपूर्ण कब्र मेरा घर और बिस्तर होगा। |
14
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यदि मैं कब्र से कहूँ ‘तू मेरा पिता है’ और कीड़े से ‘तू मेरी माता है अथवा तू मेरी बहन है।’ |
15
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किन्तु यदि वह मेरी एकमात्र आशा है तब तो कोई आशा मुझे नहीं हैं और कोई भी व्यक्ति मेरे लिये कोई आशा नहीं देख सकता है। |
16
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क्या मेरी आशा भी मेरे साथ मृत्यु के द्वार तक जायेगी क्या मैं और मेरी आशा एक साथ धूल में मिलेंगे” |