काश, तुम मेरे शिशु भाई होते, मेरी माता की छाती का दूध पीते हुए! यदि मैं तुझसे वहीं बाहर मिल जाती तो तुम्हारा चुम्बन मैं ले लेती, और कोई व्यक्ति मेरी निन्दा नहीं कर पाता!
मैं तुम्हारी अगुवाई करती और तुम्हें मैं अपनी माँ के भवन में ले आती, उस माता के कक्ष में जिसने मुझे शिक्षा दी। मैं तुम्हें अपने अनार की सुगंधित दाखमधु देती, उसका रस तुम्हें पीने को देती।
कौन है यह स्त्री अपने प्रियतम पर झुकी हुई जो मरुभूमि से आ रही है मैंने तुम्हें सेब के पेड़ तले जगाया था, जहाँ तेरी माता ने तुझे गर्भ में धरा और यही वह स्थान था जहाँ तेरा जन्म हुआ।
अपने हृदय पर तू मुद्रा सा धर। जैसी मुद्रा तेरी बाँह पर है। क्योंकि प्रेम भी उतना ही सबल है जितनी मृत्यु सबल है। भावना इतनी तीव्र है जितनी कब्र होती है। इसकी धदक धधकती हुई लपटों सी होती है!
किन्तु सुलैसान, मेरा अपना अंगूर का बाग मेरे लिये है। हे सुलैमान, मेरे चाँदी के एक हजार शेकेल सब तू ही रख ले, और ये दो सौ शेकेल उन लोगों के लिये हैं जो खेतों में फलों की रखवाली करते हैं!