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Lamentations 3:4
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Lamentations Chapters
Lamentations 3 Verses
1
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उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूं; |
2
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वह मुझे ले जा कर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है; |
3
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उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है। |
4
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उसने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है; |
5
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उसने मुझे रोकने के लिये किला बनाया, और मुझ को कठिन दु:ख और श्रम से घेरा है; |
6
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उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगों के समान अन्धेरे स्थानों में बसा दिया है। |
7
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मेरे चारों ओर उसने बाड़ा बान्धा है कि मैं निकल नहीं सकता; उसने मुझे भारी सांकल से जकड़ा है; |
8
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मैं चिल्ला चिल्लाके दोहाई देता हूँ, तौभी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता; |
9
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मेरे मार्गों को उसने गढ़े हुए पत्थरों से रोक रखा है, मेरी डगरों को उसने टेढ़ी कर दिया है। |
10
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वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है; |
11
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उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है। |
12
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उसने धनुष चढ़ा कर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है। |
13
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उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है; |
14
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सब लोग मुझ पर हंसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं, |
15
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उसने मुझे कठिन दु:ख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है। |
16
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उसने मेरे दांतों को कंकरी से तोड़ डाला, और मुझे राख से ढांप दिया है; |
17
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और मुझ को मन से उतार कर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ; |
18
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इसलिऐ मैं ने कहा, मेरा बल नाश हुआ, और मेरी आश जो यहोवा पर थी, वह टूट गई है। |
19
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मेरा दु:ख और मारा मारा फिरना, मेरा नागदौने और-और विष का पीना स्मरण कर! |
20
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मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इस से मेरा प्राण ढला जाता है। |
21
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परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, इसीलिये मुझे आाशा है: |
22
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हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है। |
23
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प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है। |
24
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मेरे मन ने कहा, यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूंगा। |
25
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जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिये यहोवा भला है। |
26
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यहोवा से उद्धार पाने की आशा रख कर चुपचाप रहना भला है। |
27
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पुरुष के लिये जवानी में जूआ उठाना भला है। |
28
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वह यह जान कर अकेला चुपचाप रहे, कि परमेश्वर ही ने उस पर यह बोझ डाला है; |
29
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वह अपना मुंह धूल में रखे, क्या जाने इस में कुछ आशा हो; |
30
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वह अपना गाल अपने मारने वाले की ओर फेरे, और नामधराई सहता रहे। |
31
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क्योंकि प्रभु मन से सर्वदा उतारे नहीं रहता, |
32
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चाहे वह दु:ख भी दे, तौभी अपनी करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है; |
33
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क्योंकि वह मनुष्यों को अपने मन से न तो दबाता है और न दु:ख देता है। |
34
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पृथ्वी भर के बंधुओं को पांव के तले दलित करना, |
35
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किसी पुरुष का हक़ परमप्रधान के साम्हने मारना, |
36
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और किसी मनुष्य का मुक़द्दमा बिगाड़ना, इन तीन कामों को यहोवा देख नहीं सकता। |
37
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यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो, तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए? |
38
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विपत्ति और कल्याण, क्या दोनों परमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते? |
39
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सो जीवित मनुष्य क्यों कुड़कुड़ाए? और पुरुष अपने पाप के दण्ड को क्यों बुरा माने? |
40
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हम अपने चालचलन को ध्यान से परखें, और यहोवा की ओर फिरें! |
41
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हम स्वर्गवासी परमेश्वर की ओर मन लगाएं और हाथ फैलाएं और कहें: |
42
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हम ने तो अपराध और बलवा किया है, और तू ने क्षमा नहीं किया। |
43
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तेरा कोप हम पर है, तू हमारे पीछे पड़ा है, तू ने बिना तरस खाए घात किया है। |
44
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तू ने अपने को मेघ से घेर लिया है कि तुझ तक प्रार्थना न पहुंच सके। |
45
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तू ने हम को जाति जाति के लोगों के बीच में कूड़ा-कर्कट सा ठहराया है। |
46
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हमारे सब शत्रुओं ने हम पर अपना अपना मुंह फैलाया है; |
47
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भय और गड़हा, उजाड़ और विनाश, हम पर आ पड़े हैं; |
48
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मेरी आंखों से मेरी प्रजा की पुत्री के विनाश के कारण जल की धाराएं बह रही है। |
49
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मेरी आंख से लगातार आंसू बहते रहेंगे, |
50
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जब तक यहोवा स्वर्ग से मेरी ओर न देखे; |
51
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अपनी नगरी की सब स्त्रियों का हाल देखने पर मेरा दु:ख बढ़ता है। |
52
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जो व्यर्थ मेरे शत्रु बने हैं, उन्होंने निर्दयता से चिडिय़ा के समान मेरा अहेर किया है; |
53
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उन्होंने मुझे गड़हे में डाल कर मेरे जीवन का अन्त करने के लिये मेरे ऊपर पत्थर लुढ़काए हैं; |
54
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मेरे सिर पर से जल बह गया, मैं ने कहा, मैं अब नाश हो गया। |
55
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हे यहोवा, गहिरे गड़हे में से मैं ने तुझ से प्रार्थना की; |
56
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तू ने मेरी सुनी कि जो दोहाई देकर मैं चिल्लाता हूँ उस से कान न फेर ले! |
57
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जब मैं ने तुझे पुकारा, तब तू ने मुझ से कहा, मत डर! |
58
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हे यहोवा, तू ने मेरा मुक़द्दमा लड़ कर मेरा प्राण बचा लिया है। |
59
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हे यहोवा, जो अन्याय मुझ पर हुआ है उसे तू ने देखा है; तू मेरा न्याय चुका। |
60
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जो बदला उन्होंने मुझ से लिया, और जो कल्पनाएं मेरे विरुद्ध कीं, उन्हें भी तू ने देखा है। |
61
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हे यहोवा, जो कल्पनाएं और निन्दा वे मेरे विरुद्ध करते हैं, वे भी तू ने सुनी हैं। |
62
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मेरे विरोधियों के वचन, और जो कुछ भी वे मेरे विरुद्ध लगातार सोचते हैं, उन्हें तू जानता है। |
63
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उनका उठना-बैठना ध्यान से देख; वे मुझ पर लगते हुए गीत गाते हैं। |
64
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हे यहोवा, तू उनके कामों के अनुसार उन को बदला देगा। |
65
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तू उनका मन सुन्न कर देगा; तेरा शाप उन पर होगा। |
66
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हे यहोवा, तू अपने कोप से उन को खदेड़-खदेड़कर धरती पर से नाश कर देगा। |