Indian Language Bible Word Collections
Job 35:10
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Job 35 Verses
1
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फिर एलीहू इस प्रकार और भी कहता गया, |
2
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कि क्या तू इसे अपना हक़ समझता है? क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्वर के धर्म से अधिक है? |
3
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जो तू कहता है कि मुझे इस से क्या लाभ? और मुझे पापी होने में और न होने में कौन सा अधिक अन्तर है? |
4
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मैं तुझे और तेरे साथियों को भी एक संग उत्तर देता हूँ। |
5
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आकाश की ओर दृष्टि कर के देख; और आकाशमण्डल को ताक, जो तुझ से ऊंचा है। |
6
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यदि तू ने पाप किया है तो ईश्वर का क्या बिगड़ता है? यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएं तौभी तू उसके साथ क्या करता है? |
7
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यदि तू धमीं है तो उसको क्या दे देता है; वा उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है? |
8
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तेरी दुष्टता का फल तुझ ऐसे ही पुरुष के लिये है, और तेरे धर्म का फल भी मनुष्य मात्र के लिये है। |
9
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बहुत अन्धेर होने के कारण वे चिल्लाते हैं; और बलवान के बाहुबल के कारण वे दोहाई देते हैं। |
10
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तौभी कोई यह नहीं कहता, कि मेरा सृजने वाला ईश्वर कहां है, जो रात में भी गीत गवाता है, |
11
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और हमें पृथ्वी के पशुओं से अधिक शिक्षा देता, और आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धि देता है? |
12
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वे दोहाई देते हैं परन्तु कोई उत्तर नहीं देता, यह बुरे लोगों के घमण्ड के कारण होता है। |
13
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निश्चय ईश्वर व्यर्थ बातें कभी नहीं सुनता, और न सर्वशक्तिमान उन पर चित्त लगाता है। |
14
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तो तू क्यों कहता है, कि वह मुझे दर्शन नहीं देता, कि यह मुक़द्दमा उसके साम्हने है, और तू उसकी बाट जोहता हुआ ठहरा है? |
15
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परन्तु अभी तो उसने क्रोध कर के दण्ड नहीं दिया है, और अभिमान पर चित्त बहुत नहीं लगाया; |
16
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इस कारण अय्यूब व्यर्थ मुंह खोल कर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है। |