Indian Language Bible Word Collections
Job 21:4
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Job 21 Verses
2
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चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे। |
3
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मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूं; और जब मैं बातें कर चुकूं, तब पीछे ठट्ठा करना। |
4
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क्या मैं किसी मनुष्य की दोहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्यों न होऊं? |
5
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मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपनी अपनी उंगली दांत तले दबाओ। |
6
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जब मैं स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह में कंपकंपी लगती है। |
7
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क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है? |
8
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उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बाल-बच्चे उनकी आंखों के साम्हने बने रहते हैं। |
9
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उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और ईश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती। |
10
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उनका सांड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गायें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिरातीं। |
11
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वे अपने लड़कों को झुण्ड के झुण्ड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं। |
12
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वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं। |
13
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वे अपने दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं। |
14
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तौभी वे ईश्वर से कहते थे, कि हम से दूर हो! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती। |
15
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सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और जो हम उस से बिनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा? |
16
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देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहता, दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे। |
17
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कितनी बार दुष्टों का दीपक बुझ जाता है, और उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और ईश्वर क्रोध कर के उनके बांट में शोक देता है, |
18
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और वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवण्डर से उड़ाई हुई भूसी की नाईं होते हैं। |
19
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ईश्वर उसके अधर्म का दण्ड उसके लड़के-बालों के लिये रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले। |
20
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दुष्ट अपना नाश अपनी ही आंखों से देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले। |
21
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क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बाद वाले घराने से उसका क्या काम रहा। |
22
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क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहने वालों का भी न्याय करता है। |
23
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कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है। |
24
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उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हड्डियां गूदे से भरी रहती हैं। |
25
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और कोई अपने जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है। |
26
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वे दोनोंबराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं। |
27
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देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो। |
28
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तुम कहते तो हो कि रईस का घर कहां रहा? दुष्टों के निवास के डेरे कहां रहे? |
29
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परन्तु क्या तुम ने बटोहियों से कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणों से अनजान हो, |
30
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कि विपत्ति के दिन के लिये दुर्जन रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिये ऐसे लोग बचाए जाते हैं? |
31
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उसकी चाल उसके मुंह पर कौन कहेगा? और उसने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा? |
32
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तौभी वह क़ब्र को पहुंचाया जाता है, और लोग उस क़ब्र की रखवाली करते रहते हैं। |
33
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नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनित जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएंगे। |
34
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तुम्हारे उत्तरों में तो झूठ ही पाया जाता है, इसलिये तुम क्यों मुझे व्यर्थ शान्ति देते हो? |