इसके बाद मैंने दृष्टि उठाई और स्वर्ग का खुला द्वार मेरे सामने था। और वही आवाज़ जिसे मैंने पहले सुना था, तुरही के से स्वर में मुझसे कह रही थी, “यहीं ऊपर आ जा। मैं तुझे वह दिखाऊँगा जिसका भविष्य में होना निश्चित है।”
सिंहासन में से बिजली की चकाचौंध, घड़घड़ाहट तथा मेघों का गर्जन-तर्जन निकल रहे थे। सिंहासन के सामने ही लपलपाती हुई सात मशालें जल रही थीं। ये मशालें परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं।
इन चारों ही प्राणियों के छह छह पंख थे। उनके चारों ओर तथा भीतर आँखें ही आँखें भरी पड़ीं थीं। दिन रात वे निरन्तर कहते रहते थे: “सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर पवित्र है, पवित्र है, पवित्र है, जो था, जो है और जो आनेवाला है।”
वे चौबीसों प्राचीन [*चौबीसों प्राचीन प्रकाशित वाक्य में कदाचित इन चौबीस प्राचीन में बारह वे पुरुष है जो परमेश्वर के संत जनों के महान नेता थे। हो सकता है ये यहूदियों के बारह परिवार समूहों के नेता हो। तथा शेष बारह यीशु के प्रेरित है।] उसके चरणों में गिरकर, उस सदा सर्वदा जीवित रहने वाले की उपासना करते हैं। वे सिंहासन के सामने अपने मुकुट डाल देते हैं और कहते हैं:
“हे हमारे प्रभु और हमारे परमेश्वर! तू ही महिमा, आदर और शक्ति पाने को सुयोग्य है। क्योंकि तूने ही अपनी इच्छा से सभी वस्तु सरजी हैं। तेरी ही इच्छा से उनका अस्तित्व है। और तेरी ही इच्छा से हुई है उनकी सृष्टि।”