यीशु मसीह के सेवक पौलुस और तिमुथियुस की ओर से मसीह यीशु में स्थित फिलिप्पी के रहने वाले सभी संत जनों के नाम जो वहाँ निरीक्षकों और कलीसिया के सेवकों के साथ निवास करते हैं:
मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि वह परमेश्वर जिसने तुम्हारे बीच ऐसा उत्तम कार्य प्रारम्भ किया है, वही उसे उसी दिन तक बनाए रखेगा, जब मसीह यीशु फिर आकर उसे पूरा करेगा।
तुम सब के विषय में मेरे लिये ऐसा सोचना ठीक ही है। क्योंकि तुम सब मेरे मन में बसे हुए हो। और न केवल तब, जब मैं जेल में हूँ, बल्कि तब भी जब मैं सुसमाचार के सत्य की रक्षा करते हुए, उसकी प्रतिष्ठा में लगा था, तुम सब इस विशेषाधिकार में मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी रहे हो।
किन्तु कुछ और लोग तो सच्चाई के साथ नहीं, बल्कि स्वार्थ पूर्ण इच्छा से मसीह का प्रचार करते है क्योंकि वे सोचते हैं कि इससे वे बंदीगृह में मेरे लिए कष्ट पैदा कर सकेंगे।
किन्तु इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण तो यह है कि एक ढंग से या दूसरे ढंग से, चाहे बुरा उद्देश्य हो, चाहे भला प्रचार तो मसीह का ही होता है और इससे मुझे आनन्द मिलता है और आनन्द मिलता ही रहेगा।
मेरी तीव्र इच्छा और आशा यही है और मुझे इसका विश्वास है कि मैं किसी भी बात से निराश नहीं होऊँगा बल्कि पूर्ण निर्भयता के साथ जैसे मेरे देह से मसीह की महिमा सदा होती रही है, वैसे ही आगे भी होती रहेगी, चाहे मैं जीऊँ और चाहे मर जाऊँ।
और क्योंकि यह मैं निश्चय के साथ जानता हूँ कि मैं यही रहूँगा और तुम सब की आध्यात्मिक उन्नति और विश्वास से उत्पन्न आनन्द के लिये तुम्हारे साथ रहता ही रहूँगा।
किन्तु हर प्रकार से ऐसा करो कि तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के अनुकूल रहे। जिससे चाहे मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हें देखूँ और चाहे तुमसे दूर रहूँ, तुम्हारे बारे में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में दृढ़ता के साथ स्थिर हो और सुसमाचार से उत्पन्न विश्वास के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रहे हो।
तथा मैं यह भी सुनना चाहता हूँ कि तुम अपने विरोधियों से किसी प्रकार भी नहीं डर रहे हो। तुम्हारा यह साहस उनके विनाश का प्रमाण है और यही प्रमाण है तुम्हारी मुक्ति का और परमेश्वर की ओर से ऐसा ही किया जायेगा।