कुछ लोग यह भी कह रहे थे, “हमें समय अपने खेतों और अँगूर के बगीचों पर राजा का कर चुकाना पड़ता है किन्तु हम कर चुका नहीं पाते हैं इसलिए हमें कर चुकाने के वास्ते धन उधार लेना पड़ता है।
उन धनवान लोगों की तरफ़ देखो! हम भी वैसे ही अच्छे हैं जैसे वे हमारे पुत्र भी वैसे ही अच्छे हैं जैसे उनके पुत्र। किन्तु हमें अपने पुत्र—पुत्री दासों के रूप में बेचने पड़ रहे हैं। हममें से कुछ को तो दासों के रूप में अपनी पुत्रीयों को बेचना भी पड़ा है! ऐसा कुछ भी तो नहीं है जिसे हम कर सकें! हम अपने खेतों और अँगूर के बगीचों को खो चुके हैं! अब दूसरे लोग उनके मालिक हैं!”
मैंने स्वयं को शांत किया और फिर धनी परिवारों और हाकिमों के पास जा पहुँच। मैंने उनसे कहा, “तुम अपने ही लोगों को उस धन पर ब्याज चुकाने के लिये विवश कर रहे हो जिसे तुम उन्हें उधार देते हो! निश्चय ही तुम्हें ऐसा बन्द कर देना चाहिए!” फिर मैंने लोगों की एक सभा बुलाई
और फिर मैंने उन लोगों से कहा, “दूसरे देशों में हमारे यहूदी भाइयों को दासों के रूप में बेचा जाता था। उन्हें वापस खरीदने और स्वतन्त्र कराने के लिए हमसे जो बन पड़ा. हमने किया और अब तुम उन्हें फिर दासों के रूप में बेच रहे हो और हमें फिर उन्हें वापस लेना पड़ेगा!” इस प्रकार वे धनी लोग और वे हाकिम चुप्पी साधे रहे। कहने को उनके पास कुछ नहीं था।
सो मैं बोलता चला गया। मैंने कहा, “तुम लोग जो कुछ कर रहे हो, वह उचित नहीं है! तुम यह जानते हो कि तुम्हें परमेश्वर से डरना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए। तुम्हें ऐसे लज्जापूर्ण कार्य नहीं करने चाहिए जैसे दूसरे लोग करते हैं!
इसी समय तुम्हें उन के खेत, अँगूर के बगीचें, जैतून के बाग और उनके घर उन्हें वापस लौटा देने चाहिए और वह ब्याज भी तुम्हें उन्हें लौटा देना चाहिए जो तुमने उनसे वसूल किया है। तुमने उधार पर उन्हें जो धन, जो अनाज़ जो नया दाखमधु और जो तेल दिया है, उस पर एक प्रतिशत ब्याज वसूल किया है!”
इस पर धनी लोगों और हाकिमों ने कहा, “हम यह उन्हें लौटा देंगे और उनसे हम कुछ भी अधिक नहीं माँगेंगे। हे नहेमायाह, तू जैसा कहता है, हम वैसा ही करेंगे।” इसके बाद मैंने याजकों को बुलाया। मैंने धनी लोगों और हाकिमों से यह प्रतिज्ञा करवाई कि जैसा उन्होंने कहा है, वे वैसा ही करेंगे।
इसके बाद मैंने अपने कपड़ों की सलवटें फाड़ते हुए कहा, “हर उस व्यक्ति के साथ, जो अपने वचन को नहीं निभायेगा, परमेश्वर तद्नुकूल करेगा। परमेश्वर उन्हें उनके घरों से उखाड़ देगा और उन्होंने जिन भी वस्तुओं के लिये काम किया हैं वे सभी उनके हाथ से जाती रहेंगी। वह व्यक्ति अपना सब कुछ खो बैठेगा!” मैंने जब इन बातों का कहना समाप्त किया तो सभी लोग इनसे सहमत हो गये। वे सभी बोले, “आमीन!” और फिर उन्होंने यहोवा की प्रशंसा की और इस प्रकार जैसा उन्होंने वचन दिया था, वैसा ही किया
और फिर यहूदा की धरती पर अपने राज्यपाल काल के दौरान न तो मैंने और न मेरे भाईयों ने उस भोजन को ग्रहण किया जो राज्यपाल के लिये न्यायपूर्ण नहीं था। मैंने अपने भोजन को खरीदने के वास्ते कर चुकाने के लिए कभी किसी पर दबाव नहीं डाला। राजा अर्तक्षत्र केशासन काल के बीसवें साल से बत्तीसवें साल तक मैं वहाँ का राज्यपाल रहा। मैं बारह साल तक यहूदा का राज्यपाल रहा।
किन्तु मुझ से पहले के राज्यपालों ने लोगों के जीवन को दूभर बना दिया था। वे राज्यपाल लोगों पर लगभग एक पौंड चाँदी चालीस शकेल देने के लिए दबाव डाला करते थे। उन लोगों पर वे खाना और दाखमधु देने के लिये भी दबाव डालते थे। उन राज्यपालों के नीचे के हाकिम भी लोगों पर हुकूमत चलाते थे और जीवन को औऱ अधिक दूभर बनाते रहते थे। किन्तु मैं क्योंकि परमेश्वर का आदर करता था, और उससे डरता था, इसलिए मैंने कभी वैसे काम नहीं किये।
मैं, अपने भोजन की चौकी पर नियमित रूप से हाकिमों समेत एक सौ पचास यहूदियों को खाने पर बुलाया करता था। मैं चारों ओर के देशों के लोगों को भी भोजन देता था जो मेरे पास आया करते थे।
मेरे साथ मेरी मेज़ पर खाना खाने वाले लोगों के लिये इतना खाना सुनिश्चित किया गया था: एक बैल, छ: तगड़ी भेड़ें और अलग—अलग तरीके के पक्षी। इसके अलावा हर दसों दिन मेरी मेज़ पर हर प्रकार का दाखमधु लाया जाता था। फिर भी मैंने कभी ऐसे भोजन की मांग नहीं की, जो राज्यपाल के लिए अनुमोदित नहीं था। मैंने अपने भोजन का दाम चुकाने के लिये कर चुकाने के वास्ते, उन लोगों पर कभी दबाव नहीं डाला। मैं यह जानता था कि वे लोग जिस काम को कर रहे हैं वह बहुत कठिन है।