अब ऐसा हुआ कि यीशु कहीं प्रार्थना कर रहा था। जब वह प्रार्थना समाप्त कर चुका तो उसके एक शिष्य ने उससे कहा, “हे प्रभु, हमें सिखा कि हम प्रार्थना कैसे करें। जैसा कि यूहन्ना ने अपने शिष्यों को सिखाया था।”
(5-6) फिर उसने उनसे कहा, “मानो, तुममें से किसी का एक मित्र है, सो तुम आधी रात उसके पास जाकर कहते हो, ‘हे मित्र मुझे तीन रोटियाँ दे। क्योंकि मेरा एक मित्र अभी-अभी यात्रा से मेरे पास आया है और मेरे पास उसके सामने परोसने के लिये कुछ भी नहीं है।’
और कल्पना करो उस व्यक्ति ने भीतर से उत्तर दिया, ‘मुझे तंग मत कर, द्वार बंद हो चुका है, बिस्तर में मेरे साथ मेरे बच्चे हैं, सो तुझे कुछ भी देने मैं खड़ा नहीं हो सकता।’
मैं तुम्हें बताता हूँ वह यद्यपि नहीं उठेगा और तुम्हें कुछ नहीं देगा, किन्तु फिर भी क्योंकि वह तुम्हारा मित्र है, सो तुम्हारे निरन्तर, बिना संकोच माँगते रहने से वह खड़ा होगा और तुम्हारी आवश्यकता भर, तुम्हें देगा।
सो बुरे होते हूए भी जब तुम जानते हो कि अपने बच्चों को उत्तम उपहार कैसे दिये जाते हैं, तो स्वर्ग में स्थित परम पिता, जो उससे माँगते हैं, उन्हें पवित्र आत्मा कितना अधिक देगा।”
(मत्ती 12:22-30; मरकुस 3:20-27) फिर जब यीशु एक गूँगा बना डालने वाली दुष्टात्मा को निकाल रहा था तो ऐसा हुआ कि जैसे ही वह दुष्टात्मा बाहर निकली, तो वह गूँगा, बोलने लगा। भीड़ के लोग इससे बहुत चकित हुए।
किन्तु यीशु जान गया कि उनके मनों में क्या है। सो वह उनसे बोला, “वह राज्य जिसमें अपने भीतर ही फूट पड़ जाये, नष्ट हो जाता है और ऐसे ही किसी घर का भी फूट पड़ने पर उसका नाश हो जाता है।
यदि शैतान अपने ही विरुद्ध फूट पड़े तो उसका राज्य कैसे टिक सकता है? यह मैंने तुमसे इसलिये पूछा है कि तुम कहते हो कि मैं बैल्ज़ाबुल की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ।
किन्तु यदि मैं बैल्ज़ाबुल की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ तो तुम्हारे अनुयायी उन्हें किसकी सहायता से निकालते हैं? सो तुझे तेरे अपने लोग ही अनुचित सिद्ध करेंगे।
किन्तु जब कभी कोई उससे अधिक शक्तिशाली उस पर हमला कर उसे हरा देता है तो वह उसके सभी हथियारों को, जिन पर उसे भरोसा था, उससे छीन लेता है और लूट के माल को वे आपस में बाँट लेते हैं।
“जब कोई दुष्टात्मा किसी मनुष्य से बाहर निकलती है तो विश्राम को खोजते हुए सूखे स्थानों से होती हुई जाती हैं और जब उसे आराम नहीं मिलता तो वह कहती हैं, ‘मैं अपने उसी घर लौटूँगी जहाँ से गयी हूँ।’
फिर वह जाकर अपने से भी अधिक दुष्ट अन्य सात दुष्टात्माओं को वहाँ लाती है। फिर वे उसमें जाकर रहने लगती हैं। इस प्रकार उस व्यक्ति की बाद की यह स्थिति पहली स्थिति से भी अधिक बुरी हो जाती है।”
फिर ऐसा हुआ कि जैसे ही यीशु ने ये बातें कहीं, भीड़ में से एक स्त्री उठी और ऊँचे स्वर में बोली, “वह गर्भ धन्य है, जिसने तुझे धारण किया। वे स्तन धन्य है, जिनका तूने पान किया है।”
(मत्ती 12:38-42; मरकुस 8:12) जैसे जैसे भीड़ बढ़ रही थी, वह कहने लगा, “यह एक दुष्ट पीढ़ी है। यह कोई चिन्ह देखना चाहती है। किन्तु इसे योना कि चिन्ह के सिवा और कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।
“दक्षिण की रानी [*दक्षिण की रानी या “शीबा की रानी।” वह हजार मील चल कर सुलैमान से परमेश्वर का ज्ञान सीखने आयी थी। देखें 1 राजा 10:1-13] न्याय के दिन प्रकट होकर इस पीढ़ी के लोगों पर अभियोग लगायेगी और उन्हें दोषी ठहरायेगी क्योंकि वह धरती के दूसरे छोरों से सुलैमान का ज्ञान सुनने को आयी और अब देखो यहाँ तो कोई सुलैमान से भी बड़ा है।
“नीनवे के लोग न्याय के दिन इस पीढ़ी के लोगों के विरोध में खड़े होकर उन पर दोष लगायेंगे क्योंकि उन्होंने योना के उपदेश को सुन कर मन फिराया था। और देखो अब तो योना से भी महान कोई यहाँ है!
(मत्ती 5:15; 6:22-23) “दीपक जलाकर कोई भी उसे किसी छिपे स्थान या किसी बर्तन के भीतर नहीं रखता, बल्कि वह इसे दीवट पर रखता है ताकि जो भीतर आयें प्रकाश देख सकें।
तुम्हारी देह का दीपक तुम्हारी आँखें हैं, सो यदि आँखें साफ हैं तो सारी देह प्रकाश से भरी है किन्तु, यदि ये बुरी हैं तो तुम्हारी देह अंधकारमय हो जाती है।
अतः यदि तुम्हारा सारा शरीर प्रकाश से परिपूर्ण है और इसका कोई भी अंग अंधकारमय नहीं है तो वह पूरी तरह ऐसे चमकेगा मानो कोई दीपक तुम पर अपनी किरणों में चमक रहा हो।”
(मत्ती 23:1-36; मरकुस 12:38-40; लूका 20:45-47) यीशु ने जब अपनी बात समाप्त की तो एक फ़रीसी ने उससे अपने साथ भोजन करने का आग्रह किया। सो वह भीतर जाकर भोजन करने बैठ गया।
“ओ फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम अपने पुदीने और सुदाब बूटी और हर किसी जड़ी बूटी का दसवाँ हिस्सा तो अर्पित करते हो किन्तु परमेश्वर के लिये प्रेम और न्याय की उपेक्षा करते हो। किन्तु इन बातों को तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना करना चाहिये था।
“ओ फरीसियों, तुम्हें धिक्कार है! क्योंकि तुम यहूदी आराधनालयों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आसन चाहते हो और बाज़ारों में सम्मानपूर्ण नमस्कार लेना तुम्हें भाता है।
इस पर यीशु ने कहा, “ओ न्यायशास्त्रियों! तुम्हें धिक्कार है। क्योंकि तुम लोगों पर ऐसे बोझ लादते हो जिन्हें उठाना कठिन है। और तुम स्वयं उन बोझों को एक उँगली तक से छूना भर नहीं चाहते।
यानी हाबिल की हत्या से लेकर जकरयाह की हत्या तक का हिसाब, जो परमेश्वर के मन्दिर और वेदी के बीच की गयी थीं। हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ इस पीढ़ी के लोगों को इसके लिए लेखा जोखा देना ही होगा।
“हे न्यायशास्त्रियों, तुम्हें धिक्कार है, क्योंकि तुमने ज्ञान की कुंजी ले तो ली है। पर उसमें न तो तुमने खुद प्रवेश किया और जो प्रवेश करने का जतन कर रहे थे उनको भी तुमने बाधा पहुँचाई।”