फिर वह दौड़ कर शमौन पतरस और उस दूसरे शिष्य के पास जो (यीशु का प्रिय था) पहुँची। और उनसे बोली, “वे प्रभु को कब्र से निकाल कर ले गये हैं। और हमें नहीं पता कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।”
उन्होंने उससे पूछा, “हे स्त्री, तू क्यों विलाप कर रही है?” उसने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मुझे पता नहीं कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है?”
यीशु ने उससे कहा, “हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसे खोज रही है?” यह सोचकर कि वह माली है, उसने उससे कहा, “श्रीमान, यदि कहीं तुमने उसे उठाया है तो मुझे बताओ तुमने उसे कहाँ रखा है? मैं उसे ले जाऊँगी।”
यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अभी तक परम पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ। बल्कि मेरे भाईयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने परम पिता और तुम्हारे परम पिता तथा अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’ ”
(मत्ती 28:16-20; मरकुस 16:14-18; लूका 24:36-49) उसी दिन शाम को, जो सप्ताह का पहला दिन था, उसके शिष्य यहूदियों के डर के कारण दरवाज़े बंद किये हुए थे। तभी यीशु वहाँ आकर उनके बीच खड़ा हो गया और उनसे बोला, “तुम्हें शांति मिले।”
दूसरे शिष्य उससे कह रहे थे, “हमने प्रभु को देखा है।” किन्तु उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के निशान न देख लूँ और उनमें अपनी उँगली न डाल लूँ तथा उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मुझे विश्वास नहीं होगा।”
आठ दिन बाद उसके शिष्य एक बार फिर घर के भीतर थे। और थोमा उनके साथ था। (यद्यपि दरवाज़े पर ताला पड़ा था।) यीशू आया और उनके बीच खड़ा होकर बोला, “तुम्हें शांति मिले।”
और जो बातें यहाँ लिखी हैं, वे इसलिए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। और इसलिये कि विश्वास करते हुए उसके नाम से तुम जीवन पाओ।