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Job 19:27
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Job 19 Verses
1
तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2
“कब तक तुम मुझे सताते रहोगे और शब्दों से मुझको तोड़ते रहोगे
3
अब देखों, तुमने दसियों बार मुझे अपमानित किया है। मुझ पर वार करते तुम्हें शर्म नहीं आती है।
4
यदि मैंने पाप किया तो यह मेरी समस्या है। यह तुम्हें हानि नहीं पहुँचाता।
5
तुम बस यह चाहते हो कि तुम मुझसे उत्तम दिखो। तुम कहते हो कि मेरे कष्ट मुझ को दोषी प्रमाणित करते हैं।
6
किन्तु वह तो परमेश्वर है जिसने मेरे साथ बुरा किया है और जिसने मेरे चारों तरफ अपना फंदा फैलाया है।
7
मैं पुकारा करता हूँ, ‘मेरे संग बुरा किया है।’ लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिलता हूँ। चाहे मैं न्याय की पुकार पुकारा करुँ मेरी कोई नहीं सुनता है।
8
मेरा मार्ग परमेश्वर ने रोका है, इसलिये उसको मैं पार नहीं कर सकता। उसने अंधकार में मेरा मार्ग छुपा दिया है।
9
मेरा सम्मान परमेश्वर ने छीना है। उसने मेरे सिर से मुकुट छीन लिया है।
10
जब तक मेरा प्राण नहीं निकल जाता, परमेश्वर मुझ को करवट दर करवट पटकियाँ देता है। वह मेरी आशा को ऐसे उखाड़ता है जैसे कोई जड़ से वृक्ष को उखाड़ दे।
11
मेरे विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध भड़क रहा है। वह मुझे अपना शत्रु कहता है।
12
परमेश्वर अपनी सेना मुझ पर प्रहार करने को भेजता है। वे मेरे चारों और बुर्जियाँ बनाते हैं। मेरे तम्बू के चारों ओर वे आक्रमण करने के लिये छावनी बनाते हैं।
13
“मेरे बन्धुओं को परमेश्वर ने बैरी बनाया। अपने मित्रों के लिये मैं पराया हो गया।
14
मेरे सम्बन्धियों ने मुझको त्याग दिया। मेरे मित्रों ने मुझको भुला दिया।
15
मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
16
मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है। यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
17
मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है। मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।
18
छोटे बच्चे तक मेरी हँसी उड़ाते है। जब मैं उनके पास जाता हूँ तो वे मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।
19
मेरे अपने मित्र मुझ से घृणा करते हैं। यहाँ तक कि ऐसे लोग जो मेरे प्रिय हैं, मेरे विरोधी बन गये हैं।
20
“मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई। अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।
21
“हे मेरे मित्रों मुझ पर दया करो, दया करो मुझ पर क्योंकि परमेश्वर का हाथ मुझ को छू गया है।
22
क्यों मुझे तुम भी सताते हो जैसे मुझको परमेश्वर ने सताया है क्यों मुझ को तुम दु:ख देते और कभी तृप्त नहीं होते हो
23
“मेरी यह कामना है, कि जो मैं कहता हूँ उसे कोई याद रखे और किसी पुस्तक में लिखे। मेरी यह कामना है, कि काश! मेरे शब्द किसी गोल पत्रक पर लिखी जाती।
24
मेरी यह कामना है काश! मैं जिन बातों को कहता उन्हें किसी लोहे की टाँकी से सीसे पर लिखा जाता, अथवा उनको चट्टान पर खोद दिया जाता, ताकि वे सदा के लिये अमर हो जाती।
25
मुझको यह पता है कि कोई एक ऐसा है, जो मुझको बचाता है। मैं जानता हूँ अंत में वह धरती पर खड़ा होगा और मुझे बचायेगा।
26
यहाँ तक कि मेरी चमड़ी नष्ट हो जाये, किन्तु काश, मैं अपने जीते जी परमेश्वर को देख सकूँ।
27
अपने लिये मैं परमेश्वर को स्वयं देखना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि स्वयं उसको अपनी आँखों से देखूँ न कि किसी दूसरे की आँखों से। मेरा मन मुझ में ही उतावला हो रहा है।
28
“सम्भव है तुम कहो, “हम अय्यूब को तंग करेंगे। उस पर दोष मढ़ने का हम को कोई कारण मिल जायेगा।”
29
किन्तु तुम्हें स्वयं तलवार से डरना चाहिये क्योंकि पापी के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध दण्ड लायेगा। तुम्हें दण्ड देने को परमेश्वर तलवार काम में लायेगा तभी तुम समझोगे कि वहाँ न्याय का एक समय है।”