English Bible Languages

Indian Language Bible Word Collections

Bible Versions

English

Tamil

Hebrew

Greek

Malayalam

Hindi

Telugu

Kannada

Gujarati

Punjabi

Urdu

Bengali

Oriya

Marathi

Assamese

Books

Ezra Chapters

Ezra 3 Verses

1 अत, सातवें महीने से इस्राएल के लोग अपने अपने नगरों में लौट गये। उस समय, सभी लोग यरूशलेम में एक साथ इकट्ठे हुए। वे सभी एक इकाई के रूप में संगठित थे।
2 तब योसादाक के पुत्र येशू और उसके साथ याजकों तथा शालतीएल के पुत्र जरूब्बाबेल और उसके साथ के लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर की वेदी बनाई। उन लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर के लिये वेदी इसलिए बनाई ताकि वे इस पर बलि चढ़ा सकें। उन्होंने उसे ठीक मूसा के नियमों के अनुसार बनाया। मूसा परमेश्वर का विशेष सेवक था।
3 वे लोग अपने आस—पास के रहने वाले अन्य लोगों से डरे हुए थे। किन्तु यह भय उन्हें रोक न सका और उन्होंने वेदी की पुरानी नींव पर ही वेदी बनाई और उस पर यहोवा को होमबलि दी। उन्होंने वे बलियाँ सवेरे और शाम को दीं।
4 तब उन्होंने आश्रयों का पर्व ठीक वैसे ही मनाया जैसा मूसा के नियम में कहा गया है। उन्होंने उत्सव के प्रत्येक दिन के लिये उचित संख्या में होमबलि दी।
5 उसके बाद, उन्होंने लगातार चलने वाली प्रत्येक दिन की होमबलि नया चाँद और सभी अन्य उत्सव व विश्राम के दिनों की भेंटे चढ़ानी आरम्भ की जैसा कि यहोवा द्वारा आदेश दिया गया था। लोग अन्य उन भेंटों को भी चढ़ाने लगे जिन्हें वे यहोवा को चढ़ाना चाहते थे।
6 अत: सातवें महीने के पहले दिन इस्राएल के इन लोगों ने यहोवा को फिर भेंट चढ़ाना आरम्भ किया। यह तब भी किया गया जबकि मन्दिर की नींव अभी फिर से नहीं बनी थी। मन्दिर का पुन: निर्माण
7 तब उन लोगों ने जो बन्धुवाई से छूट कर आये थे, संगतराशों और बढ़ईयों को धन दिया और उन लोगों ने उन्हें भोजन, दाखमधु और जैतून का तेल दिया। उन्होंने इन चीजों का उपयोग सोर और सीदोन के लोगों को लबानोन से देवदार के लट्ठों को लाने के लिये भुगतान करने में किया। वे लोग चाहते थे कि जापा नगर के समुद्री तट पर लट्ठों को जहाजों द्वारा ले आएँ। जैसा कि सुलैमान ने किया था जब उसने पहले मन्दिर को बनाया था। फारस के राजा कुस्रू ने यह करने के लिये उन्हें स्वीकृति दे दी।
8 अत: यरूशलेम में मन्दिर पर उनके पहुँचने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने मे शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और योसादाक के पुत्र येशू ने काम करना आरम्भ किया। उनके भाईयों, याजकों, लेवीवंशियों और प्रत्येक व्यक्ति जो बन्धुवाई से यरूशलेम लौटे थे, सब ने उनके साथ काम करना आरम्भ किया। उन्होंने यहोवा के मन्दिर को बनाने के लिये उन लेवीवंशियों को प्रमुख चुना जो बीस वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे।
9 ये वे लोग थे जो मन्दिर के बनने की देखरेख कर रहे थे, येशू के पुत्र और उसके भाई, कदमीएल और उसके पुत्र (यहूदा के वंशज थे) हेनादाद के पुत्र और उनके बन्धु लेवीवंशी।
10 कारीगरों ने यहोवा के मन्दिर की नींव डालनी पूरी कर दी। जब नींव पड़ गई तब याजकों ने अपने विशेष वस्त्र पहने। तब उन्होंने अपनी तुरही ली और आसाप के पुत्रों ने अपने झाँझों को लिया। उन्होंने यहोवा की स्तुति के लिये अपने अपने स्थान ले लिये। यह उसी तरह किया गया जिस तरह करने के लिये भूतकाल में इस्राएल के राजा दाऊद ने आदेश दिया था।
11 यहोवा ने जो कुछ किया, उन्होंने उसके लिये उसकी प्रशंसा करते हुए तथा धन्यवाद देते हुए, यह गीत गाया, “वह अच्छा है, उसका इस्राएल के लिए प्रेम शाश्वत है।” [*वह अच्छा … शाश्वत है संभवत: इसका अर्थ यह है कि उन्होंने उस भजन को गाया जिसे हम भजन 111—118 और भजन 136 के रूप में जानते हैं।] और तब सभी लोग खुश हुए। उन्होंने बहुत जोर से उद्घोष और यहोवा की स्तुति की। क्यों क्योंकि मन्दिर की नींव पूरी हो चुकी थी।
12 किन्तु बुजुर्ग याजकों में से बहुत से, लेवीवंशी और परिवार प्रमुख रो पड़े। क्यों क्योंकि उन लोगों ने प्रथम मन्दिर को देखा था, और वे यह याद कर रहे थे कि वह कितना सुन्दर था। वे रो पड़े जब उन्होंने नये मन्दिर को देखा। वे रो रहे थे जब बहुत से अन्य लोग प्रसन्न थे और शोर मचा रहे थे।
13 उद्घोष बहुत दूर तक सुना जा सकता था। उन सभी लोगों ने इतना शोर मचाया कि कोई व्यक्ति प्रसन्नता के उद्घोष और रोने में अन्तर नहीं कर सकता था।
×

Alert

×