मूसा का ससुर यित्रो मिद्यान में याजक था। परमेश्वर ने मूसा और इस्राएल के लोगों की अनेक प्रकार से जो सहायता की उसके बारे में यित्रो ने सुना। यित्रो ने इस्राएल के लोगों को यहोवा द्वारा मिस्र से बाहर ले जाए जाने के बारे में सुना।
इसलिए यित्रो मूसा के पास गया जब वह परमेश्वर के पर्वत के पास डेरा डाले था। वह मूसा की पत्नी सिप्पोरा को अपने साथ लाया। (सिप्पोरा मूसा के साथ नहीं थी क्योंकि मूसा ने उसे उसके घर भेज दिया था।)
दूसरे पुत्र का नाम एलीएजेर रखा क्योंकि जब वह उत्पन्न हुआ तो मूसा ने कहा, “मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरी सहायता की और मिस्र के राजा की तलवार से मुझे बचाया है।”
इसलिए यित्रो मूसा के पास तब गया जब वह परमेश्वर के पर्वत (सीनै पर्वत) के निकट मरुभूमि में डेरा डाले था। मूसा की पत्नी और उसके दो पुत्र यित्रो के साथ थे।
यित्रो ने मूसा को एक सन्देश भेजा। यित्रो ने कहा, “मैं तुम्हारा ससुर यित्रो हूँ और मैं तुम्हारी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को तुम्हारे पास ला रहा हूँ।”
इसलिए मूसा अपने ससुर से मिलने गया। मूसा उसके सामने झुका और उसे चूमा। दोनों लोगों ने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। तब वे मूसा के डेरे में और अधिक बातें करने गए।
मूसा ने अपने ससुर यित्रो को हर एक बात बताई जो यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए की थी। मूसा ने वे चीज़ें भी बताई जो यहोवा ने फ़िरौन और मिस्र के लोगों के लिए की थीं। मूसा ने रास्ते की सभी समस्याओं के बारे में बताया और मूसा ने अपने ससुर को बताया कि किस तरह यहोवा ने इस्राएली लोगों को बचाया, जब—जब वे कष्ट में थे।
यित्रो उस समय बहुत प्रसन्न हुआ जब उसने यहोवा द्वारा इस्राएल के लिए की गई सभी अच्छी बातों को सुना। यित्रो इसलिए प्रसन्न था कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मिस्रियों से स्वतन्त्र कर दिया था।
तब यित्रो ने परमेश्वर के सम्मान में बलि तथा भेंटे दीं। तब हारून तथा इस्राएल के सभी बुजुर्ग (नेता) मूसा के ससुर यित्रो के साथ भोजन करने आए। यह उन्होंने परमेश्वर की उपासना की विशेष विधि के रूप में किया।
यित्रो ने मूसा को न्याय करते देखा। उसने पूछा, “तुम ही यह क्यों कर रहे हो? एक मात्र न्यायाधीश तुम्हीं क्यों हो? और लोग केवल तुम्हारे पास ही सारे दिन क्यों आते हैं?”
यदि उन लोगों का कोई विवाद होता है तो वे मेरे पास आते हैं। मैं निर्णय करता हूँ कि कौन ठीक है। इस प्रकार मैं परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देता हूँ।”
मैं तुम्हें कुछ सुझाव दूँगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर तुम्हारा साथ देगा। जो तुम्हें करना चाहिए वह यह है। तुम्हें परमेश्वर के सामने लोगों का प्रतिनिधित्व करते रहना चाहिए, और तुम्हें उनके इन विवादों और समस्याओं को परमेश्वर के सामने रखना चाहिए।
तुम्हें परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। लोगों को चेतावनी दो कि वे नियम न तोड़े। लोगों को जीने की ठीक राह बताओ। उन्हें बताओ कि वे क्या करेें।
किन्तु तुम्हें लोगों में से अच्छे लोगों को चुनना चाहिए। “तुम्हें अपने विश्वासपात्र आदमियों का चुनाव करना चाहिए अर्थात् उन आदमियों का जो परमेश्वर का सम्मान करते हो। उन आदमियों को चुनो जो धन के लिए अपना निर्णय न बदलें। इन आदमियों को लोगों का प्रशासक बनाओ। हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों पर भी प्रशासक होने चाहिए।
इन्हीं प्रशासकों को लोगों का न्याय करने दो। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो तो वे प्रशासक निर्णय के लिए तुम्हारे पास आ सकते हैं। किन्तु अन्य मामलों का निर्णय वे स्वयं ही कर सकते हैं। इस प्रकार यह तुम्हारे लिए अधिक सरल होगा। इसके अतिरिक्त, ये तुम्हारे काम में हाथ बटा सकेंगे।
यदि तुम यहोवा की इच्छानुसार ऐसा करते हो तब तुम अपना कार्य करते रहने योग्य हो सकोगे। और इसके साथ ही साथ सभी लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर जा सकेंगे।”