पाँच दिन बाद महायाजक हनन्याह कुछ बुजुर्ग यहूदी नेताओं और तिरतुल्लुस नाम के एक वकील को साथ लेकर कैसरिया आया। वे राज्यपाल के सामने पौलुस पर अभियोग सिद्ध करने आये थे।
फेलिक्स के सामने पौलुस की पेशी होने पर मुकदमे की कार्यवाही आरम्भ करते हुए तिरतुल्लुस बोला, “हे महोदय, तुम्हारे कारण हम बड़ी शांति के साथ रह रहे हैं और तुम्हारी दूर-दृष्टि से देश में बहुत से अपेक्षित सुधार आये हैं।
(6-8) इसने मन्दिर को भी अपवित्र करने का जतन किया है। हमने इसे इसीलिए पकड़ा है। हम इस पर जो आरोप लगा रहे हैं, [*कुछ यूनानी प्रतियों में यह भाग जोड़ा गया है: “हम अपनी व्यवस्था के अनुसार इसका न्याय करना चाहते थे। 7 किन्तु सेनानायक लिसिआस ने बलपूर्वक उसे हमसे छीन लिया 8 और अपने लोगों को आज्ञा दी कि वे इसे अभियोग लगाने के लिए तेरे सामने ले जाये।”] उनसबको आप स्वयं इससे पूछताछ करके जान सकते हो।”
फिर राज्यपाल ने जब पौलुस को बोलने के लिये इशारा किया तो उसने उत्तर देते हुए कहा, “तू बहुत दिनों से इस देश का न्यायाधीश है। यह जानते हुए मैं प्रसन्नता के साथ अपना बचाव प्रस्तुत कर रहा हूँ।
“किन्तु मैं तेरे सामने यह स्वीकार करता हूँ कि मैं अपने पूर्वजों के परमेश्वर की आराधना अपने पंथ के अनुसार करता हूँ, जिसे ये एक पंथ कहते हैं। मैं हर उस बात में विश्वास करता हूँ जिसे व्यवस्था बताती है और जो नबियों के ग्रन्थों में लिखी है।
(17-18) “बरसों तक दूर रहने के बाद मैं अपने दीन जनों के लिये उपहार ले कर भेंट चढ़ाने आया था। और जब मैं यह कर ही रहा था उन्होंने मुझे मन्दिर में पाया, तब मैं विधि-विधान पूर्वक शुद्ध था। न वहाँ कोई भीड़ थी और न कोई अशांति।
सिवाय इसके कि जब मैं उनके बीच में खड़ा था तब मैंने ऊँचे स्वर में कहा था, ‘मरे, हुओं में से जी उठने के विषय में आज तुम्हारे द्वारा मेरा न्याय किया जा रहा है।’ ”
फिर फेलिक्स, जो इस-पंथ की पूरी जानकारी रखता था, मुकदमे की सुनवाई को स्थगित करते हुए बोला, “जब सेनानायक लुसिआस आयेगा, मैं तभी तुम्हारे इस मुकदमे पर अपना निर्णय दूँगा।”
कुछ दिनों बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला के साथ वहाँ आया। वह एक यहूदी महिला थी। फेलिक्स ने पौलुस को बुलवा भेजा और यीशु मसीह में विश्वास के विषय में उससे सुना।
किन्तु जब पौलुस नेकी, आत्मसंयम और आने वाले न्याय के विषय में बोल रहा था तो फेलिक्स डर गया और बोला, “इस समय तू चला जा, अवसर मिलने पर मैं तुझे फिर बुलवाऊँगा।”
दो साल ऐसे बीत जाने के बाद फेलिक्स का स्थान पुरुखियुस फेस्तुस ने ग्रहण कर लिया। क्योंकि फेलिक्स यहूदियों को प्रसन्न रखना चाहता था इसीलिये उसने पौलुस को बंदीगृह में ही रहने दिया।