और उसने उनसे कहा, “क्या जब तुमने विश्वास धारण किया था तब पवित्र आत्मा को ग्रहण किया था?” उन्होंने उत्तर दिया, “हमने तो सुना तक नहीं है कि कोई पवित्र आत्मा है भी।”
फिर पौलुस यहूदी आराधनालय में चला गया और तीन महीने निडर होकर बोलता रहा। वह यहूदियों के साथ बहस करते हुए उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में समझाया करता था।
किन्तु उनमें से कुछ लोग बहुत हठी थे उन्होंने विश्वास ग्रहण करने को मना कर दिया और लोगों के सामने पंथ को भला बुरा कहते रहे। सो वह अपने शिष्यों को साथ ले उन्हें छोड़ कर चला गया। और तरन्नुस की पाठशाला में हर दिन विचार विमर्श करने लगा।
(13-14) कुछ यहूदी लोग, जो दुष्टात्माएँ उतारते इधर-उधर घूमा फिरा करते थे। यह करने लगे कि जिन लोगों में दुष्टात्माएँ समायी थीं, उन पर प्रभु यीशु के नाम का प्रयोग करने का यत्न करते और कहते, “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम पर जिसका प्रचार पौलुस करता है, आदेश देता हूँ।” एक स्कीवा नाम के यहूदी महायाजक के सात पुत्र जब ऐसा कर रहे थे।
फिर वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्मा सवार थीं, उन पर झपटा। उसने उन पर काबू पा कर उन दोनों को हरा दिया। इस तरह वे नंगे ही घायल होकर उस घर से निकल कर भाग गये।
जादू टोना करने वालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पुस्तकें लाकर वहाँ इकट्ठी कर दीं और सब के सामने उन्हें जला दिया। उन पुस्तकों का मूल्य पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर था।
वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक चाँदी का काम करने वाला सुनार हुआ करता था। उसने अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाता था जिससे कारीगरों को बहुत कारोबार मिलता था।
तुम देख सकते हो और सुन सकते हो कि इस पौलुस ने न केवल इफिसुस में बल्कि लगभग एशिया के समूचे क्षेत्र में लोगों को बहका फुसला कर बदल दिया है। वह कहता है कि मनुष्य के हाथों के बनाये देवता सच्चे देवता नहीं है।
इससे न केवल इस बात का भय है कि हमारा व्यवसाय बदनाम होगा बल्कि महान देवी अरतिमिस के मन्दिर की प्रतिष्ठा समाप्त हो जाने का भी डर है। और जिस देवी की उपासना समूचे एशिया और संसार द्वारा की जाती है, उसकी गरिमा छिन जाने का भी डर है।”
उधर सारे नगर में अव्यवस्था फैल गयी। सो लोगों ने मकिदुनिया से आये तथा पौलुस के साथ यात्रा कर रहे गयुस और अरिस्तर्रवुस को धर दबोचा और उन्हें रंगशाला [*रंगशाला एक विशेष स्थान जिसे रंगशाला के रूप में याजक सभाओं के लिए प्रयोग में लाते थे।] में ले भागे।
यहूदियों ने सिकन्दर को जिसका नाम भीड़ में से उन्होंने सुझाया था, आगे खड़ा कर रखा था। सिकन्दर ने अपने हाथों को हिला हिला कर लोगों के सामने बचाव पक्ष प्रस्तुत करना चाहा।
फिर नगर लिपिक ने भीड़ को शांत करके कहा, “हे इफिसुस के लोगों क्या संसार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो यह नहीं जानता कि इफिसुस नगर महान देवी अतरिमिस और स्वर्ग से गिरी हुई पवित्र शिला का संरक्षक है?
फिर भी देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी के विरुद्ध कोई शिकायत है तो अदालतें खुली हैं और वहाँ राज्यपाल हैं। वहाँ आपस में एक दूसरे पर वे अभियोग चला सकते हैं।
जो कुछ है उसके अनुसार हमें इस बात का डर है कि आज के उपद्रवों का दोष कहीं हमारे सिर न मढ़ दिया जाये। इस दंगे के लिये हमारे पास कोई भी हेतु नहीं है जिससे हम इसे उचित ठहरा सकें।”